संस्था के बहिर्नियम वे उद्देश्य होते हैं, जिनके लिए कंपनी का गठन किया जाता है। कोई कंपनी ऐसी कोई गतिविधि चलाने के लिए कानूनी रूप से पात्र नहीं होती है, जो इस खंड में अंकित उद्देश्यों से परे हो। किसी कंपनी के पंजीकरण के लिए विधिवत् प्रारूपित, सत्यापित, मुद्रांकित(स्टाम्पित) और हस्ताक्षरित संस्था का बहिर्नियम होना आवश्यक होता है।
संस्था के बहिर्नियम में निम्नलिखित भाग होते हैं :
1. मुख्य उद्देश्य
यद्यपि उप-खंड में यह स्पष्ट रूप से भले ही न कहा गया हो, किंतु जो कार्य कंपनी के मुख्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए या तो अनिवार्य हो या प्रासंगिक हो, उसे वैध माना जाता है।
2. अन्य उद्देश्य
जिन उद्देश्यों का मुख्य उद्देश्यों में उल्लेख न किया गया हो, उनका वर्णन इसके अधीन किया जा सकता है। तथापि, यदि कोई कंपनी इस उप-खंड में शामिल कोई व्यवसाय करना चाहती हो, तो उसे या तो विशेष संकल्प पारित करना होगा या साधारण संकल्प पारित करना होगा और उसके लिए केंद्रीय सरकार का अनुमोदन लेना होगा।
3. पंजीकृत कार्यालय संबंधी खंड
उस राज्य का नाम और पता उपलब्ध कराएँ, जहाँ कंपनी स्थित है। इस चरण में पंजीकृत कार्यालय का सही-सही पता देना अपेक्षित नहीं है, किंतु उसकी सूचना कंपनी की स्थापना के तीस दिन के अंदर पंजीयक को अवश्य दी जानी चाहिए।
4. पूँजी संबंधी खंड
वह अधिकतम पूँजी विनिर्दिष्ट करना, जिसे कंपनी शेयर जारी कर जुटाने के लिए अधिकृत होगी। इसके साथ ही, उन शेयरों की संख्या भी विनिर्दिष्ट की जानी है, जिनमें वह पूँजी विभाजित की जाएगी।
5. सहभागिता खंड
संस्था के बहिर्नियम के हस्ताक्षरकर्ता कंपनी के साथ सहभागिता का अपना आशय और शेयर खरीदने की सहमति अंकित करते हैं।
संस्था के बहिर्नियम किसी अधिवक्ता या सनदी लेखाकार के मार्गदर्शन से सरलतापूर्वक तैयार किए जा सकते हैं। संस्था के बहिर्नियम के बारे में अधिक जानकारी क) कंपनी अधिनियम, 1956 तथा ख) द लीगल सर्विसेज़ ऑफ़ इंडिया से प्राप्त की जा सकती है।
संस्था के अंतर्नियम तैयार करना
संस्था के अंतर्नियम किसी कंपनी के आंतरिक प्रबंध से संबंधित नियम होते हैं। ये नियम संस्था के बहिर्नियम के अधीनस्थ होते हैं और इसलिए संस्था के बहिर्नियम में जो कहा गया है ये उसके विरोधी या उससे परे नहीं होने चाहिए।
किसी कंपनी के पंजीकरण के लिए विधिवत् प्रारूपित, सत्यापित, मुद्रांकित(स्टाम्पित) और हस्ताक्षरित संस्था का अंतर्नियम होना आवश्यक होता है।
सारणी ए वह दस्तावेज़ (विस्तृत विवरण के लिए कंपनी अधिनियम, 1956 देखें) है, जिसमें कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए नियम और विनियम शामिल होते हैं। यदि कंपनी सारणी ए अपनाती है, तो उसे अलग से संस्था के अंतर्नियम बनाने की आवश्यकता नहीं है।
जो कंपनिया सारणी ए नहीं अपनाती हैं, उन्हें पंजीकरण के लिए मुद्रांकित(स्टाम्पित) और संस्था के बहिर्नियम पर हस्ताक्षर करने वाले हस्ताक्षरकर्ताओं द्वारा विधिवत् हस्ताक्षरित संस्था के अंतर्नियम की प्रति प्रस्तुत करना आवश्यक होता है।
संस्था के अंतर्नियम किसी अधिवक्ता या सनदी लेखाकार के मार्गदर्शन से सरलतापूर्वक तैयार किए जा सकते हैं। संस्था के अंतर्नियम के बारे में अधिक जानकारी क) कंपनी अधिनियम, 1956 तथा ख) द लीगल सर्विसेज़ ऑफ़ इंडिया से प्राप्त की जा सकती है।
आपकी सुविधा के लिए संस्था के अंतर्नियम का प्रारूप यहाँ संलग्न है। कृपया इसे आवश्यकता के अनुरूप संशोधित /परिवर्तित करें।
Part -1 : खुद की(Private limited) कंपनी कैसे खोलें। (PVT. LTD) कंपनी को रजिस्टर्ड कैसे कराये।
Part -3 : खुद की(Private limited) कंपनी कैसे खोलें। (PVT. LTD) कंपनी को रजिस्टर्ड कैसे कराये।
आगे की जानकारी के लिए कृपया पार्ट 3 पढ़े।