अकसर अपने देश में लोग पैरों की सूजन और चकत्तेदार काले निशान व दर्द से पीड़ित रहते हैं। यह शिकायत प्राय: बनी रहती है कि सुबह के वक्त पैरों में सूजन नहीं के बराबर रहती है, पर शाम होते-होते वहां सूजन हो जाती है। विशेषकर यह अवस्था अधेड़ उम्र की महिलाएं व अत्यधिक वजन लिए हुए गृहिणियों में पायी जाती हैं। इस अवस्था को मेडिकल भाषा में सीवीआई कहते हैं। अगर यह काले निशान आने पर सही इलाज नहीं कराया गया तो इनकी परिणित धीरे-धीरे घाव के रूप में दिखने लगती है।
अचानक आई सूजन
जीवन शैली में बदलाव, न चलने की आदत व ऑफिस में कम्प्यूटर के सामने घंटों बैठे रहने की मजबूरी, पैरों के लिए बड़ी घातक साबित हो रही है। इस तरह के लोगों के पैरों की नसों (वेन्स) में खून के कतरों के जमा होने का खतरा हमेशा मंडराता रहता है। नसों में खून का जमाव होने की अवस्था को मेडिकल भाषा में डीप वेन थोम्बोसिस (डीवीटी) कहते हैं। यह डीवीटी की अवस्था मरीज की जान को खतरे में डाल देती है। अगर समय रहते किसी वैस्क्युलर सर्जन से इलाज न कराया गया तो टांगों में जमे हुए खून के कतरे टूट जाते हैं और स्वतंत्र हो करके ऊपर दिल की ओर चढ़ जाते हैं। वहां से आगे जाकर फेफड़े की रक्त नली को जाम कर देते हैं। इस घटना को पल्मोनरी एम्बोलिज्म कहते हैं। यह अवस्था जानलेवा हो सकती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि पैरों में अचानक आई सूजन जान जाने का सबब बन सकती है।
अन्य कारण
वेन्स की बीमारी के अलावा पैरों में सूजन के कई अन्य कारण भी होते हैं जैसे फील पांव यानी एलिफैन्टियेंसिस, गुर्दे व दिल का रोग, ब्लडप्रेशर की दवा का सेवन (’एम्लोडिपिन’ इत्यादि)। फील पांव का रोग अकसर नमी या तराई वाले इलाकों में ज्यादा पाया जाता हैं, जहां मच्छरों की बहुतायत होती हैं। सूजन के कारणों का निदान करने पर ही सूजन से छुटकारा मिल पाता है।
इलाज न करवाने का नतीजा
अगर पैरों की सूजन को ऐसे ही छोड़ दिया जाये तो इसके दो दुष्परिणाम होते हैं। एक तो उभरी हुई नसें फूलते- फूलते अन्त में फट जाती हैं और रक्त स्रव यानी ब्लीडिंग आरम्भ हो जाती है। कभी-कभी बहुत ज्यादा खून बहने के कारण अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आ जाती है। दूसरा नुकसान यह होता है कि पैरों में खुजली शुरू होती हैं। खुजाने के बाद उससे पीले रंग का खून का सत रिसने लगता हैं और पैरों में एक्जि़मा पैदा हो जाता है जो अन्तत: गन्दे, गीले व लाइलाज़ घाव के रूप में परिवर्तित हो जाता हैं। इसलिये पैरों की सूजन को गम्भीरता से लें।
सूजन होने पर
पैरों में अचानक आई सूजन या स्थाई सूजन होने पर ऐसे अस्पताल में जायें जहां पर वैस्क्युलर सर्जरी का महकमा हो और वैस्क्युलर सर्जन की चौबीस घंटे की उपलब्धता हो। अस्पताल जाने से पहले सुनिश्चित कर लें कि वहां एंजियोग्राफी की सुविधा जरूर हो। साथ ही, आधुनिकतम जांच जैसे एमआरआई, फेफड़ों का परफ्यूजन स्केन, डॉप्लर स्टडी व वेनोग्राफी की सुविधाएं हों।
पैरों में स्थाई सूजन
विवाहेतर संबंध की पक्षध लेकिन दैहिक संबंधों के प्यार हो सकता है। बिना के भी कोई हमारे परिवा हो सकता है, जिसके परिवार भावनात्मक सके। खैर, ये निजी सकते हैं, लेकिन जो किया, वह जस्टीफाइ दूसरे ब्याह स् बीवी की संतान के देश में रहते हैं, वह अब भी औसतन संरचना के लिए परिवार सीमित में आमिर की ज्यादा लगी। पाने की जिद अपने बच्चे कोख से ब् जिससे अ उनके पति हैं। अपनी किसी मर्दवादी का जा पिता जन् व्य् ठ पैरों में स्थाई सूजन अगर पैरों में बराबर सूजन बनी रहती है और सुबह व शाम सूजन में कोई खास बदलाव नहीं आता तो इसके दो कारण होते हैं। एक तो गंदा खून ऊपर दिल की ओर ठीक से नहीं पहुंचता है, जिससे पैरों में ऑक्सीजन रहित गंदे खून का जमाव होना शुरू हो जाता है। सुबह के वक्त सूजन थोड़ा हल्का मालूम पड़ता है लेकिन शाम तक अपनी पुरानी अवस्था में लौट आता है। दूसरा कारण पैरों की अन्दरूनी वेन्स में रुकावट हो जाना है। इस रुकावट का ज्यादातर कारण शुरुआती दिनों में पर्याप्त इलाज के अभाव में खून के कतरे स्थाई रूप से पैरों की अन्दरूनी शिराओं (डीप वेन्स) में जमा हो जाना है। इसके चलते पैरों में एकत्र हुए गंदे खून के लिए ऊपर चढ़ने का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। इन सबका मिलाजुला असर पैरों में स्थाई सूजन के रूप में परिणत हो जाता है। इस अवस्था को मेडिकल भाषा में पीटीएस यानी पोस्ट थौम्बॉटिक सिन्ड्रोम कहते हैं। इसलिए आपको चाहिए कि जब कभी पैरों के वेन्स में खून के कतरों के जमाव का अंदेशा हो तो बगैर देर किये किसी वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श लें और उनकी निगरानी में प्रभावी इलाज करायें।
सूजन व नीली नसें
जब कोई भी व्यक्ति सुबह नियमित रूप से नहीं टहलता है या उसकी पैदल चलने व व्यायाम करने की आदत अब तक बनी ही नहीं है, तो पैरों का ड्रेनेज सिस्टम बाधित हो जाता है और वेन्स के अन्दर स्थित कपाट यानी दरवाजे नार्मल तरीके से अपना काम नहीं कर पाते। इससे पैरों में गंदा खून एकत्रित होने लगता है और निर्धारित सीमा के बाद त्वचा के नीचे स्थित ऊपरी सतह की वेन्स यानी शिराएं, अत्यधिक खून के जमाव के कारण फूलनी शुरू हो जाती हैं। इन फूली हुई नसों को वेरीकोस वेन्स कहते हैं। ये फूली वेन्स केचुएं या मकड़ी के जाले की तरह त्वचा पर उभर आती हैं। अगर आपने आरामतलबी की दिनर्चया अपना ली तो ‘करेला नीम पर चढ़ने’ वाली कहावत लागू हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप ये फूली हुई नसें साइज में और बड़ी हो जाती हैं।
इलाज की विधाएं
अगर पै एक तो ब्लीडिंग में भर्ती शुरू पैरों पिइलाज की विधाएं अगर पैर की सूजन अचानक आई होती है तो खून के कतरों को घोलने के लिए विशेष किस्म की दवाइयां खून की नली के जरिये दी जाती हैं। इसके लिए अस्पताल में आधुनिक आईसीयू की सुविधाएं होनी आवश्यक हैं। पैरों की सूजन वाले ज्यादातर मरीजों में ऑपरेशन की जरूरत कम पड़ती है, पर विशेष दवाइयों और अन्य बिना ऑपरेशन वाली खास तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। मरीज को नियमित दवा, व्यायाम, व अन्य जरूरी सलाह का कड़ाई से पालन करना पड़ता है। आज के दौर में पैरों की सूजन के लिए लेजर तकनीक व आरएफए तकनीक का इस्तेमाल करना होता हैं, जिसमें खाल पर कोई कट नहीं लगाना पड़ता और मरीज अगले दिन ही काम पर वापस आ सकता है। पैरों की सूजन में लापरवाही न बरतें।
अचानक आई सूजन
जीवन शैली में बदलाव, न चलने की आदत व ऑफिस में कम्प्यूटर के सामने घंटों बैठे रहने की मजबूरी, पैरों के लिए बड़ी घातक साबित हो रही है। इस तरह के लोगों के पैरों की नसों (वेन्स) में खून के कतरों के जमा होने का खतरा हमेशा मंडराता रहता है। नसों में खून का जमाव होने की अवस्था को मेडिकल भाषा में डीप वेन थोम्बोसिस (डीवीटी) कहते हैं। यह डीवीटी की अवस्था मरीज की जान को खतरे में डाल देती है। अगर समय रहते किसी वैस्क्युलर सर्जन से इलाज न कराया गया तो टांगों में जमे हुए खून के कतरे टूट जाते हैं और स्वतंत्र हो करके ऊपर दिल की ओर चढ़ जाते हैं। वहां से आगे जाकर फेफड़े की रक्त नली को जाम कर देते हैं। इस घटना को पल्मोनरी एम्बोलिज्म कहते हैं। यह अवस्था जानलेवा हो सकती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि पैरों में अचानक आई सूजन जान जाने का सबब बन सकती है।
अन्य कारण
वेन्स की बीमारी के अलावा पैरों में सूजन के कई अन्य कारण भी होते हैं जैसे फील पांव यानी एलिफैन्टियेंसिस, गुर्दे व दिल का रोग, ब्लडप्रेशर की दवा का सेवन (’एम्लोडिपिन’ इत्यादि)। फील पांव का रोग अकसर नमी या तराई वाले इलाकों में ज्यादा पाया जाता हैं, जहां मच्छरों की बहुतायत होती हैं। सूजन के कारणों का निदान करने पर ही सूजन से छुटकारा मिल पाता है।
इलाज न करवाने का नतीजा
अगर पैरों की सूजन को ऐसे ही छोड़ दिया जाये तो इसके दो दुष्परिणाम होते हैं। एक तो उभरी हुई नसें फूलते- फूलते अन्त में फट जाती हैं और रक्त स्रव यानी ब्लीडिंग आरम्भ हो जाती है। कभी-कभी बहुत ज्यादा खून बहने के कारण अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आ जाती है। दूसरा नुकसान यह होता है कि पैरों में खुजली शुरू होती हैं। खुजाने के बाद उससे पीले रंग का खून का सत रिसने लगता हैं और पैरों में एक्जि़मा पैदा हो जाता है जो अन्तत: गन्दे, गीले व लाइलाज़ घाव के रूप में परिवर्तित हो जाता हैं। इसलिये पैरों की सूजन को गम्भीरता से लें।
सूजन होने पर
पैरों में अचानक आई सूजन या स्थाई सूजन होने पर ऐसे अस्पताल में जायें जहां पर वैस्क्युलर सर्जरी का महकमा हो और वैस्क्युलर सर्जन की चौबीस घंटे की उपलब्धता हो। अस्पताल जाने से पहले सुनिश्चित कर लें कि वहां एंजियोग्राफी की सुविधा जरूर हो। साथ ही, आधुनिकतम जांच जैसे एमआरआई, फेफड़ों का परफ्यूजन स्केन, डॉप्लर स्टडी व वेनोग्राफी की सुविधाएं हों।
पैरों में स्थाई सूजन
विवाहेतर संबंध की पक्षध लेकिन दैहिक संबंधों के प्यार हो सकता है। बिना के भी कोई हमारे परिवा हो सकता है, जिसके परिवार भावनात्मक सके। खैर, ये निजी सकते हैं, लेकिन जो किया, वह जस्टीफाइ दूसरे ब्याह स् बीवी की संतान के देश में रहते हैं, वह अब भी औसतन संरचना के लिए परिवार सीमित में आमिर की ज्यादा लगी। पाने की जिद अपने बच्चे कोख से ब् जिससे अ उनके पति हैं। अपनी किसी मर्दवादी का जा पिता जन् व्य् ठ पैरों में स्थाई सूजन अगर पैरों में बराबर सूजन बनी रहती है और सुबह व शाम सूजन में कोई खास बदलाव नहीं आता तो इसके दो कारण होते हैं। एक तो गंदा खून ऊपर दिल की ओर ठीक से नहीं पहुंचता है, जिससे पैरों में ऑक्सीजन रहित गंदे खून का जमाव होना शुरू हो जाता है। सुबह के वक्त सूजन थोड़ा हल्का मालूम पड़ता है लेकिन शाम तक अपनी पुरानी अवस्था में लौट आता है। दूसरा कारण पैरों की अन्दरूनी वेन्स में रुकावट हो जाना है। इस रुकावट का ज्यादातर कारण शुरुआती दिनों में पर्याप्त इलाज के अभाव में खून के कतरे स्थाई रूप से पैरों की अन्दरूनी शिराओं (डीप वेन्स) में जमा हो जाना है। इसके चलते पैरों में एकत्र हुए गंदे खून के लिए ऊपर चढ़ने का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। इन सबका मिलाजुला असर पैरों में स्थाई सूजन के रूप में परिणत हो जाता है। इस अवस्था को मेडिकल भाषा में पीटीएस यानी पोस्ट थौम्बॉटिक सिन्ड्रोम कहते हैं। इसलिए आपको चाहिए कि जब कभी पैरों के वेन्स में खून के कतरों के जमाव का अंदेशा हो तो बगैर देर किये किसी वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श लें और उनकी निगरानी में प्रभावी इलाज करायें।
सूजन व नीली नसें
जब कोई भी व्यक्ति सुबह नियमित रूप से नहीं टहलता है या उसकी पैदल चलने व व्यायाम करने की आदत अब तक बनी ही नहीं है, तो पैरों का ड्रेनेज सिस्टम बाधित हो जाता है और वेन्स के अन्दर स्थित कपाट यानी दरवाजे नार्मल तरीके से अपना काम नहीं कर पाते। इससे पैरों में गंदा खून एकत्रित होने लगता है और निर्धारित सीमा के बाद त्वचा के नीचे स्थित ऊपरी सतह की वेन्स यानी शिराएं, अत्यधिक खून के जमाव के कारण फूलनी शुरू हो जाती हैं। इन फूली हुई नसों को वेरीकोस वेन्स कहते हैं। ये फूली वेन्स केचुएं या मकड़ी के जाले की तरह त्वचा पर उभर आती हैं। अगर आपने आरामतलबी की दिनर्चया अपना ली तो ‘करेला नीम पर चढ़ने’ वाली कहावत लागू हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप ये फूली हुई नसें साइज में और बड़ी हो जाती हैं।
इलाज की विधाएं
अगर पै एक तो ब्लीडिंग में भर्ती शुरू पैरों पिइलाज की विधाएं अगर पैर की सूजन अचानक आई होती है तो खून के कतरों को घोलने के लिए विशेष किस्म की दवाइयां खून की नली के जरिये दी जाती हैं। इसके लिए अस्पताल में आधुनिक आईसीयू की सुविधाएं होनी आवश्यक हैं। पैरों की सूजन वाले ज्यादातर मरीजों में ऑपरेशन की जरूरत कम पड़ती है, पर विशेष दवाइयों और अन्य बिना ऑपरेशन वाली खास तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। मरीज को नियमित दवा, व्यायाम, व अन्य जरूरी सलाह का कड़ाई से पालन करना पड़ता है। आज के दौर में पैरों की सूजन के लिए लेजर तकनीक व आरएफए तकनीक का इस्तेमाल करना होता हैं, जिसमें खाल पर कोई कट नहीं लगाना पड़ता और मरीज अगले दिन ही काम पर वापस आ सकता है। पैरों की सूजन में लापरवाही न बरतें।