मानव अधिकार एक व्यक्ति की राष्ट्रीयता, उसके निवास, लिंग, राष्ट्रीयता या जातीय मूल, रंग, धर्म या अन्य स्थिति पर ध्यान दिए बिना सभी मनुष्यों के लिए निहित अधिकार हैं। सभी समान रूप से भेदभाव के बिना मानव अधिकारों के हकदार हैं। ये अधिकार आपस में संबंधित, अन्योन्याश्रित और अविभाज्य हैं।
भारत में, मानवाधिकारों की रक्षा के कई तरीके हैं। संसद और कार्यपालिका को देश में कानून का निर्माण और कार्यान्वयन सौंपा गया है जबकि न्यायपालिका इसके निष्पादन को सुरक्षित करती है।
इन बुनियादी चीजों के अलावा संस्थानों के अन्य निकाय हैं जो मौजूदा तंत्र को मजबूत और समृद्ध बनाते हैं। वास्तव में समर्पित सरकारी एजेंसियां, सामाजिक रूप से समर्पित गैर सरकारी संगठन, स्थानीय सामुदायिक समूह और अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसियां दुनिया भर में मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए कार्य करती हैं।
मानव विशेषाधिकार के पीछे मूल संकल्पना
मानव अधिकारों की आधुनिक अवधारणा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विकसित हुई। वाक्यांश "मानव अधिकार" अपेक्षाकृत आधुनिक है। उसकी बौद्धिक आधारशीला दर्शन और प्राकृतिक नियम व स्वतंत्रता की अवधारणाओं से पता लगाया जा सकता है।
मानव अधिकारों की आधुनिक अवधारणा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विकसित हुई। वाक्यांश "मानव अधिकार" अपेक्षाकृत आधुनिक है। उसकी बौद्धिक आधारशीला दर्शन और प्राकृतिक नियम व स्वतंत्रता की अवधारणाओं से पता लगाया जा सकता है।
सम्मान और समझ मानव अधिकारों की संस्कृति को पाने के लिए आवश्यक है जो कि हर इंसान की बुनियादी जरूरतों के प्रति संवेदनशील रहा है। यह हर किसी के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की आवश्यकताओं का सम्मान करता है और हर व्यक्ति और लोगों के समूह की वृद्धि और विकास के लिए निष्पक्ष और समान अवसर प्रदान करता है। यह राज्य की शक्ति और उसकी एजेंसियों द्वारा उसके मनमाने उपयोग से हर एक की रक्षा करता है।
संयुक्त राष्ट्र और इसके सदस्यों ने कानूनी निकायों से कई दौर की बातचीत के बाद अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून और अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार कानून बनाए हैं।
मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा
मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1948 में अपनाया गया था। यूडीएचआर ने सदस्य देशों से मानवीय, नागरिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकारों को बढ़ावा देने पर जोर दिया। ये अधिकार " दुनिया में स्वतंत्रता, न्याय और शांति" का हिस्सा हैं।
मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1948 में अपनाया गया था। यूडीएचआर ने सदस्य देशों से मानवीय, नागरिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकारों को बढ़ावा देने पर जोर दिया। ये अधिकार " दुनिया में स्वतंत्रता, न्याय और शांति" का हिस्सा हैं।
स्वाभाविक आत्मसम्मान और बराबरी व अविच्छेद अधिकारों की मान्यता मानव परिवार के सभी सदस्यों के लिए दुनिया में स्वतंत्रता, न्याय और शांति के आधार हैं। मानव अधिकारों की उपेक्षा और अवमानना कर बर्बर कार्य हुए जिसकी हमारी आत्मा इजाजत नहीं देती लेकिन मानव अधिकारों के आने के बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को तवज्जो दिया जाने लगा है जिससे आम लोग सर्वोच्च आकांक्षा रख सकें।
संयुक्त राष्ट्र ने बुनियादी मानव अधिकारों, मनुष्य की गरिमा और मूल्यों के साथ पुरुष और महिलाओं के समान अधिकार में भरोसा जताया है और अत्यधिक स्वतंत्रता के साथ जीवन के बेहतर स्तर और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।
संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने मानव अधिकारों के निरीक्षण और बुनियादी स्वतंत्रता के अनुपालन के साथ सार्वभौमिक सम्मान को बढ़ावा देने और उसके सहयोग से इन्हें प्राप्त करने का वादा किया है।
हालांकि यूडीएचआर एक गैर बाध्यकारी प्रस्ताव है और अब इसे अंतरराष्ट्रीय प्रथागत कानून के तौर पर माना जाने लगा है जो राष्ट्रीय और अन्य न्यायपालिकाओं द्वारा उपयुक्त परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है।
भारतीय संविधान तथा मानव अधिकार
मानवाधिकार पर सार्वभौम घोषणा का प्रारूप तैयार करने में भारत ने सक्रिय भागीदारी की। संयुक्त राष्ट्र के लिए घोषणा पत्र का मसौदा तैयार करने में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने विशेष रूप से लैंगिक समानता को दर्शाने की जरूरत को उजागर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत छह प्रमुख मानव अधिकार प्रतिज्ञापत्र और बच्चों के अधिकारों पर करार के वैकल्पित प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता है।
मानवाधिकार पर सार्वभौम घोषणा का प्रारूप तैयार करने में भारत ने सक्रिय भागीदारी की। संयुक्त राष्ट्र के लिए घोषणा पत्र का मसौदा तैयार करने में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने विशेष रूप से लैंगिक समानता को दर्शाने की जरूरत को उजागर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत छह प्रमुख मानव अधिकार प्रतिज्ञापत्र और बच्चों के अधिकारों पर करार के वैकल्पित प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता है।
भारतीय संविधान के लागू होने के बाद सार्वभौम घोषणा के अधिकांश अधिकारों को इसके दो भागों, मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल किया गया है जो मानव अधिकारों के सार्वभौम घोषणा के लगभग क्षेत्रों को अपने में समेटे हुए है।
अधिकारों के पहले सेट में अनुच्छेद 2 से 21 तक घोषणा और इसके अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 तक में मौलिक अधिकारों को शामिल किया गया है। इसमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरूद्ध अधिकार, धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक स्वतंत्रता का अधिकार, कुछ विधियों की व्यावृति और सांविधानिक उपचारों का अधिकार शामिल है।
अधिकारों के दूसरे सेट में अनुच्छेद 22 से 28 तक घोषणा और संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को शामिल किया गया है। इसमें सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, कार्य का अधिकार, रोजगार चुनने का स्वतंत्र अधिकार, बेरोजगारी के खिलाफ काम की सुरक्षा और कार्य के लिए सुविधाजनक परिस्थितियां, समान कार्य के लिए समान वेतन, मानवीय गरिमा का सम्मान, आराम और छुट्टी का अधिकार, समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में निर्बाध हिस्सेदारी का अधिकार, मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार, लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना, समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता और राज्य द्वारा पालन किए जाने वाले नीति के सिद्धांतों को शामिल किया गया है।
हालांकि, मानव अधिकारों के लिए सम्मान भारतीय लोकाचार में सामाजिक दर्शन के एक भाग के रूप में लंबे समय से एक अस्तित्व में है।
मानव अधिकार रक्षा अधिनियम, 1993
भारत ने मानव अधिकार रक्षा अधिनियम, 1993 को बनाकर संघ तथा राज्य स्तर पर मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए आयोगों की स्थापना आवश्यक कर दिया है। इस अधिनियम की वजह से संघ स्तर पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग तथा राज्यों के स्तर पर राज्य मानव अधिकार आयोगों की स्थापना करना कानूनी रूप से आवश्यक हो गया है। यह आयोग मानव अधिकारों तथा उससे संबंधित विषयों को सुलझाने के लिए जिम्मेदार हैं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा राज्य मानवाधिकार आयोग अब नागरिकों के रोममर्रा के जीवन का हिस्सा बन गया है साथ ही देश के शासन में भी इसका असर बढ़ता हुआ महसूस किया जा सकता है। अधिकारों में बारे में नागरिकों में अभिरुचि तथा जानकारी लगातार बढ़ रही है। भारत विश्व में मानवाधिकारों की रक्षा का पक्षधर है तथा इसके लिए कार्यरत संघों का समर्थक भी है।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) की स्थापना 12 अक्टूबर, 1993 को मानव अधिकार रक्षा अधिनियम, 1993 के तहत की गई थी। यह आयोग देश में मानव अधिकारों की रक्षा के लिए स्वायत्त तथा स्वतंत्र निकाय की तरह कार्य करता है।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) की स्थापना 12 अक्टूबर, 1993 को मानव अधिकार रक्षा अधिनियम, 1993 के तहत की गई थी। यह आयोग देश में मानव अधिकारों की रक्षा के लिए स्वायत्त तथा स्वतंत्र निकाय की तरह कार्य करता है।
मानव अधिकार मुद्दों को गंभीरता से लेते हुए आयोग ने कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। इनमें से कई मुद्दे तो सीधे भारत के उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार देखे जा रहे हैं।
उच्चतम न्यायालय के आदेनुसार निम्न कार्यक्रमों का अनुसरण किया जा रहा है:
बंधुआ श्रम का उन्मूलन
रांची, आगरा एवं ग्वालियर के मानसिक अस्पतालों का कामकाज
शासकीय महिला सुरक्षा गृह, आगरा का कामकाज
भोजन का अधिकार
मानव अधिकार आयोग द्वारा उठाए गए अन्य मुद्दे तथा कार्यक्रमों मे शामिल हैं:
रांची, आगरा एवं ग्वालियर के मानसिक अस्पतालों का कामकाज
शासकीय महिला सुरक्षा गृह, आगरा का कामकाज
भोजन का अधिकार
मानव अधिकार आयोग द्वारा उठाए गए अन्य मुद्दे तथा कार्यक्रमों मे शामिल हैं:
बाल विवाह निषेध अधिनियम की समीक्षा, 1929
बाल अधिकार प्रोटोकॉल के लिए कन्वेंशन
सरकारी कर्मचारियों द्वारा करवाए जाने वाले बालश्रम की रोकथाम: सेवा नियमावली का संशोधन
बाल श्रम उन्मूलन
बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा पर मीडिया के लिए गाइडबुक
महिलाओं और बच्चों के अवैध व्यापार: लिंग संवेदीकरण के लिए न्यायपालिका मैनुअल
सेक्स पर्यटन और तस्करी की रोकथाम पर संवेदनशील कार्यक्रम
मातृ रक्ताल्पता और मानव अधिकार
वृन्दावन में बेसहारा औरतों का पुनर्वास
कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकना
रेल में महिला यात्रियों का उत्पीड़न रोकना
सफाई उन्मूलन पुस्तिका
दलित मुद्दों विशेषकार उन पर हो रहे अत्याचारों की रोकथाम
डिनोटिफाइड और खानाबदोश जनजातियों की समस्याएं
विकलांगों के लिए अधिकार
स्वास्थ्य का अधिकार
एचआईवी/एड्स
1999 के उड़ीसा चक्रवात पीड़ितों के लिए राहत कार्य
2001 के गुजरात भूकंप के बाद राहत उपायों की निगरानी
जिला शिकायत प्राधिकरण
जनसंख्या नीति विकास और मानवाधिकार
मानव अधिकार दिवस
मानव अधिकार दिवस हर वर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है। इसी दिन वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकारों को सार्वभौमिक रूप से मान्य किया था।
बाल अधिकार प्रोटोकॉल के लिए कन्वेंशन
सरकारी कर्मचारियों द्वारा करवाए जाने वाले बालश्रम की रोकथाम: सेवा नियमावली का संशोधन
बाल श्रम उन्मूलन
बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा पर मीडिया के लिए गाइडबुक
महिलाओं और बच्चों के अवैध व्यापार: लिंग संवेदीकरण के लिए न्यायपालिका मैनुअल
सेक्स पर्यटन और तस्करी की रोकथाम पर संवेदनशील कार्यक्रम
मातृ रक्ताल्पता और मानव अधिकार
वृन्दावन में बेसहारा औरतों का पुनर्वास
कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकना
रेल में महिला यात्रियों का उत्पीड़न रोकना
सफाई उन्मूलन पुस्तिका
दलित मुद्दों विशेषकार उन पर हो रहे अत्याचारों की रोकथाम
डिनोटिफाइड और खानाबदोश जनजातियों की समस्याएं
विकलांगों के लिए अधिकार
स्वास्थ्य का अधिकार
एचआईवी/एड्स
1999 के उड़ीसा चक्रवात पीड़ितों के लिए राहत कार्य
2001 के गुजरात भूकंप के बाद राहत उपायों की निगरानी
जिला शिकायत प्राधिकरण
जनसंख्या नीति विकास और मानवाधिकार
मानव अधिकार दिवस
मानव अधिकार दिवस हर वर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है। इसी दिन वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकारों को सार्वभौमिक रूप से मान्य किया था।
मानव अधिकार दिवस की तिथियों की शुरूआत औपचारिक रूप से सन 1950 से मानी जाती है, क्योंकि इसी वर्ष 10 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अध्यादेश 423 (V) पारित किया था, जिसके बाद यह इच्छुक संगठनों द्वारा अपनाया गया।
इस वर्ष यानी मानव अधिकार दिवस 2010 की थीम है 'भेदभाव के अंत तक कार्य करने वाले मानव अधिकार रक्षक'.
मानव अधिकार दिवस वर्ष 2010 में उन लोगों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिन्होंने अपनी जान को जोखिम में डालते हुए मानव अधिकारों की रक्षा तथा भेदभाव मिटाने के लिए लड़ाई लड़ी है। इस दिवस का उद्देश्य एक ऐसी नई पीढ़ी को प्रेरित करना भी है जो मानव अधिकारों की रक्षा एवं भेदभाव मिटाने के लिए दुनिया भर में आगे आएं। हालांकि दुनियाभर की सरकारों की यह नैतिक जिम्मेदारी भी है कि वो मानव अधिकारों की रक्षा की लड़ाई लड़ रहे इन लोगों को सुरक्षा दें तथा समाज से भेदभाव मिटाने के इनके अभियान को संरक्षण दे।