Bheed Movie Review in Hindi - 'भीड़' फिल्म का रिव्यु |
डायरेक्टर : अनुभव सिन्हाश्रेणी:Hindi, Dramaअवधि:1 Hrs 55 Min
लॉकडाउन ने दुनिया भर में अनगिनत लोगों की जिंदगियों को ऐसे जख्म दिए, जो भले भर चुके हैं, मगर उनके निशां आज भी बाकी हैं। 'मुल्क', 'थप्पड़', 'आर्टिकल 15', 'अनेक' जैसी सोच प्रेरक और सामजिक मुद्दों को हाइलाइट करने वाले फिल्मकार अनुभव सिन्हा इस बार कोरोना काल में हुई प्रवासी मजदूरी की बदहाली और बेबसी को अपने रियलिस्टिक अंदाज में बयान करते हैं। इस बार अनुभव अपनी फिल्म मेकिंग में एक पायदान और ऊपर इसलिए भी नजर आते हैं कि उन्होंने अपने घरों को वापिस जाने वाले मजदूरों के दर्द को ब्लैक एंड वाइट टोन में समेटा है और इसमें कोई शक नहीं कि फिल्म का यह सफेद और स्याह रंग कहानी के किरदारों का काला और उजलापन दोनों दर्शाता है।
'भीड़' फिल्म की कहानी - Bheed Movie Story
फिल्म की कहानी लॉकडाउन की डिस्टर्ब और द्रवित करने वाली घटनाओं पर आधारित है, तो कहानी की शुरुआत उस दिल दहला देने वाली सत्य घटना से होती है, जहां 16 मजदूर ट्रेन के नीचे महज इसलिए कुचले गए, क्योंकि वे पटरी के रास्ते अपने गांव वापिस जा रहे थे और उन्हें लगा था कि ट्रेन बंद है और वे पटरियों पर ही सो गए थे। पलायन के दौरान बलराम द्विवेदी(पंकज कपूर) जो पेशे से चौकीदार है, जो हजारों लोगों की तरह अपने परिवार को गांव वापिस पहुंचना चाहता है, दूसरी तरफ हाई सोसायटी की दिया मिर्जा है, जो सड़क के रास्ते अपनी शोफर ड्रिवन फॉर्च्यूनर को लेकर बेटी को हॉस्टल से लिवा लाने के लिए निकली है। पुलिस विभाग की एक टीम है, जो पलायन करने वाले श्रमिकों और सिस्टम के बीच जूझ रही है, जिसमें सूर्य कुमार सिंह उर्फ टीकस (राजकुमार राव) को उसका बॉस यादव (आशुतोष राणा) उस संवेदनशील और भीड़ भरी चेक पोस्ट का इंचार्ज तो बना लेता है, मगर यहां सूर्या को अपने निचली जाति से होने के कारण हीन और कमतर महसूस करवाया जाता है। एक चैनल रिपोर्टर विधि प्रभाकर (कृतिका कामरान) कैमरा पर्सन के साथ वहां के हालात की विडंबनाओं को दर्शाने की कोशिशों में लगी है। इस कहानी में साइकिल पर अपने पिता को मीलों ले जाने वाली उस लड़की का ट्रैक भी है और सीमेंट मिक्सचर से निकलते लोग भी भी हैं, जिसने कोरोना काल में लोगों की आंखें नम कर दी थीं, तो तबगीली जमात का रेफरेंस भी है, जिसने लोगों को आपस में ही विभाजित कर दिया था। इन सभी बेबस कहानियों के बीच दलित सूर्य और ऊंची जाति की मेडिकल छात्रा रेणु शर्मा (भूमि पेडनेकर ) की प्रेम कहानी भी है, जो जात-पांत की विषमताओं से गुजर कर अपना रास्ता तलाशने का दुस्साहस करती है।(ads)
कैसी है अनुभव सिन्हा की फिल्म 'भीड़'
अनुभव अपनी फिल्म में उन कई हादसों और घटनाओं को दर्शाते हैं, जो कोरोना की त्रासदी का शिकार हुए थे, मगर उनका फोकस प्रवासी मजदूर और सामाजिक और जातिगत भेदभाव पर रहता है। वे समाज के एक विशेष वर्ग के दुख, निराशा और हताशा का सजीव चित्रण करते हैं, मगर उस सिनेमाई पटल पर वे एक ऐसा संसार रच देते हैं, जो आपको बेचैन कर देता है। कास्ट और क्लास के अंतर के साथ सिस्टम की मजबूरियों को भी अपने किरदारों के जरिए मुखर बना ले जाते हैं। उनके किरदारों की बुनावट सधी हुई है। फिल्म की लिखावट कसी हुई है, जिसमें, ''ताकतवर और गरीब का न्याय सेम होना चाहिए', 'हम जैसे निकले थे, साहब कहीं पहुंचे ही नहीं', 'इनकन्वीनियंट हैं, अनकंफर्टेबल है फिर भी हमारा इंडिया इन्क्रेडिबल है' जैसे चुटीले डायलॉग बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं। इसे अनुभव ने सौम्या तिवारी और सोनाली जैन के साथ मिलाकर लिखा है। ब्लैक एंड वाइट टोन में सिनेमटोग्राफर सौमिक मुखर्जी बाजी मार ले जाते हैं। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर विषय को गहराई प्रदान करता है। हां, कई लोगों को ऐसा लग सकता है कि अनुभाव लॉकडाउन की दूसरी त्रासदियों को भी समेटते तो बेहतर होता, मगर इससे कहानी के घिचपिच होने की संभावना थी। अनुराग साइकिया के संगीत में सजे गाने कहीं से भी कंटीन्यूटी में खलल नहीं डालते बल्कि स्क्रीनप्ले को बल देते हैं।
'भीड़' मूवी का ट्रेलर - Bheed Movie Trailer
स्टार्स की दमदार एक्टिंग
अभिनय के मामले में फिल्म हर तरह से लाजवाब है। कोरोना काल में व्यवस्था से भिड़ते सूर्य कुमार सिंह उर्फ टीकस के रूप में राजकुमार राव निचली जाति के दंश को भी बहुत ही खूबी से दर्शा ले जाते हैं। वे समाज में पनपी उस गहरी सोच को बहुत ही मार्मिक तरीके से दर्शाते हैं कि दलित समाज का लड़का अगर अफसर भी बन जाए, तो उसे ऑर्डर देने में हिचक होती है। एक अरसे बाद पंकज कपूर को चौकीदार बलराम द्विवेदी के लेयर्ड रोल में देखना सुखद लगता है। उन्होंने अपने रोल को गजब अंदाज में निभाया है। पुलिस अफसर के रूप में आशुतोष राणा अपनी संवाद अदायगी से खूब जंचें हैं, मगर उनकी भूमिका को और विस्तार दिया जाना चाहिए था। भूमि पेडनेकर ने अपनी भूमिका को बहुत ही खूबसूरती से अंजाम दिया है, तो वहीं दिया मिर्जा का किरदार यादगार बन पड़ा है। आदित्य श्रीवास्तव भी अच्छे लगे हैं। रिपोर्टर के रूप में कृतिका कामरान चौंकाती हैं।
क्यों देखें -रियलिस्टिक फिल्मों के शौक़ीन और कोरोना का कहर झेल चुके लोग ये फिल्म देख सकते हैं।