Basic terminology of Accounting in Tally
Basic terminology of Accounting in Tally |
Basic terminology of Accounting in Tally
Business(व्यवसाय ) : साधारणत: ‘व्यवसाय’ शब्द से हमारा मतलब उन सभी मानवीय क्रियाओं से है जो कि धन उपार्जन के लिए की जाती हैं।
उदाहरणार्थ-कारखानों में विभिन्न तरह के माल को बनाना, किसानों द्वारा अनाज की उत्पत्ति किया जाना
1.Assets (सम्पत्ति) : सम्पत्तियो से आशय बिजनेस के आर्थिक स्त्रोत से है जिन्हें मुद्रा में व्यक्त किया जा सकता है, जिनका मूल्य होता है और जिनका उपयोग व्यापर के संचालन व आय अर्जन के लिए किया जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सम्पत्तियाँ वे स्त्रोत हैं जो भविष्य में लाभ पहुँचाते हैं।
उदाहरण के लिए, मशीन, भूमि, भवन, ट्रक, आदि।
assets को दो प्रकार की होती है –
a. Fixed Assets (स्थायी सम्पत्तियां ): फिक्स्ड असेट वे असेट्स होती है जिन्हें लंबे समय के लिए रखा जाता है ,फिक्स्ड असेट को व्यवसाय हेतु प्रयुक्त किया जाता है और संचालन की सामान्य प्रकिया में दुबारा बिक्री नहीं की जाती है।
उदाहरण- भूमि, भवन, मशीनरी, संयन्त्र, फर्नीचर
b. Current Assets (चालू संपत्तियां) : करंट असेट्स वे असेट्स होती है जिन्हें कम समय के लिए रखा जाता है करंट असेट की संचालन की सामान्य प्रकिया में दुबारा बिक्री की जाती है।
उदाहरण- देनदार, पूर्वदत्त व्यय, स्टॉक, प्राप्य बिल, आदि।
2. Liabilities(दायित्व): स्वामी के धन के अतिरिक्त बिज़नेस का वित्तीय दायित्व लाइबिलिटी कहलाता है। वह, धन जो व्यावसायिक उपक्रम को दूसरों को देना है, दायित्व कहा जाता है ,इस प्रकार दायित्व देयताएँ हैं, ये सभी राशियाँ हैं, जो लेनदारों को भविष्य में देय हैं।
उदाहरण- लेनदार, देय बिल, ऋण एवं अधिविकर्ष इत्यादि।
3.Capital (पूँजी) : उस धनराशि को पूँजी कहा जाता है जिसे व्यवसाय का स्वामी व्यवसाय में लगाता है। इसी राशि से व्यवसाय प्रारम्भ किया जाता है।
5. Goods (माल): ऐसी सभी चीजे गुड्स के अंतर्गत शामिल होती है जिन्हें पुनः विक्रय के लिए खरीदा जाता है ।अर्थात जिन वस्तुओ को व्यापारी खरीदते या बेचते है ।
उदाहरण -कच्चा माल, विनिर्मित वस्तुएँ अथवा सेवाएँ।
6. Sales (बिक्री) : विक्रय अथवा बिक्री विपणन की एक प्रक्रिया है जिसमें कोई उत्पाद अथवा सेवा को धन अथवा किसी अन्य वस्तु के प्रतिफल के रूप में दिया जाता है। बिक्री दो प्रकार की हो सकती है ।
a.Cash sales(नकद विक्रय )
b.Credit sales(उधार विक्रय)
7. Revenue (आय): यह व्यवसाय में कस्टमर्स को अपने उत्पादों की बिक्री से अथवा सेवाएँ उपलब्ध कराए जाने से अर्जित की गई राशियाँ होती हैं। इन्हें सेल्स रेवेन्यूज कहा जाता है। कहीं व्यवसायों के लिए रेवेन्यूज के अन्य आइटम्स एवं सामान्य स्त्रोत बिक्री, शुल्क, कमीशन, व्याज, लाभांश, राॅयल्टीज,प्राप्त किया जाने वाला किराया इत्यादि होते हैं।
8. Expense (व्यय) :आगम की प्राप्ति के लिए प्रयोग की गई वस्तुओं एवं सेवाओं की लागत को व्यय कहते हैं। ये वे लागते होती है जिन्हें किसी व्यवसाय से आय अर्जित करने की प्रकिया में व्यय किया जाता है। सामान्यत: एक्सपेसेंज को किसी अकाउंटिंग अवधि के दौरान असेट्स के उपभोग अथवा प्रयुक्त की गई सेवाओं की लागत से मापा जाता है।
उदाहरण :-विज्ञापन व्यय, कमीशन, ह्रास, किराया, वेतन, मूल्यहास, किराया, मजदूरी, वेतन, व्याज टेलीफोन इत्यादि ।
9. Expenditure: यह उपभोग किए गए संसाधनों की मात्रा है। आमतौर पर यह लम्बी अवधि की प्रकृति का होता है। इसीलिए, इसे भविष्य में प्राप्त किया जाना लाभदायक होता है।
10.Income (आय):आगम में से व्यय घटाने पर जो शेष बचता है, उसे आय (Income) कहा जाता है। व्यावसायिक गतिविधियों अथवा अन्य गतिविधियों से किसी संगठन के निवल मूल्य में होने वाली वृद्धि इनकम होती है। इनकम एक व्यापक शब्द है जिसमें लाभ भी शामिल होता है।
आय = आगम – व्यय
11. Profit (लाभ) : प्रॉफिट किसी लेखांकन वर्ष के दौरान व्ययों की अपेक्षा आय की वृद्धि को कहा जाता है। यह मालिक की इक्विटी में वृद्धि करता है।
12. Gain: गेन किसी समयावधि के दौरान इक्विटी (निवल सम्पति) में गुड्स के स्वरूप और स्थान तथा होल्डिंग की जाने वाली असेट्स में परिवर्तन से उत्पन्न होने वाला बदलाव होता है। यह केपिटल प्रकृति या रेवेन्यू प्रकृति में से कोई एक अथवा दोनों ही तरह का हो सकता है।
14. Turnover (टर्नओवर): एक निश्चित अवधि में केश और क्रेडिट सेल्स दोनों को मिलाकर कुल सेल्स को टर्नओवर कहते है ।
15. Proprietor(प्रोपराइटर): व्यवसाय में पूँजी निवेशित करने वाले व्यक्ति को उस व्यवसाय के प्रोपराइटर के रूप में जाना जाता है। यह व्यवसाय का संपूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए अधिकृत होता है। वह व्यवसायों करने में जोखिम वहन करता है तथा उसकी हानियों के लिए भी उत्तरदायी होता है।
16. Drawings (आहरण) : व्यापार का मालिक अपने व्यक्तिगत खर्च के लिए जो रूपया व्यापार से खर्च करता है या निकालता है वह आहरण कहलाता है जैसे किसी ने अपने व्यापार के रूपयो से बच्चों के स्कूल कि फीस भरी है तो वह आहरण कहलाती है खर्च नही कहलाता है यह मालिक द्वारा व्यक्तिगत उपयोग हेतु निकाली जानेे वाली नकद या अन्य असेट्स की राशि है।
17. Purchase(क्रय) :पुन विक्रय के लिए खरीदा गया माल क्रय कहा जाता है यह उधार नकद दोना तरीके से किया जा सकता है
उदाहरण – किसी कपडे के व्यापारी ने कपड़ा खरीदा है तो वह क्रय कहा जाता है लेकिन साज सजावट के लिए खरीदा गया फर्नीचर क्रय नही कहा जा सकता है
purchase दो प्रकार का होता है
a.Cash purchase(नकद क्रय )
b.Credit purchase(उधार क्रय)
18. Stock : यह किसी व्यवसाय के अतर्गत उपलब्ध माल, स्पेयर्स और अन्य आइटम्स जैसी चीजों का पैमाना है। इसे क्लोजिंग स्टॉक भी कहा जाता है। किसी व्यापार के अतंर्गत स्टॉक आॅन हैड माल की वह मात्रा होती है जिसे बैलेंस शीट तैयार किए जाने की दिनाकं तक बेचा नहीं गया होता है। इसे क्लोजिंग स्टॉक (एंडिग इन्वेटरी) भी कहा जाता है। किसी विनिमार्ण कम्पनी के अंतर्गत क्लोजिंग स्टॉक में यह कच्चा माल, आधा-तैयार माल और पूरी तरह से तैयार माल शामिल किया जाता है जो क्लोजिंग डेट पर हाथ में उपलब्ध रहता है। इसी प्रकार से, अकाउंटिंग ईयर (लेखा वर्ष) के प्रारंभ मे स्टॉक की मात्रा को ओपनिंग स्टॉक (प्रारंभिक इन्वेटरी) कहा जाता है।
19.Creditor(लेनदार): जिस व्यक्ति से हम उधार माल खरीदते है उसे हम creditor कहते है ।
20.Debtor(देनदार) : जिस व्यक्ति को हम उधार माल बेचते है उसे हम Debtors कहते है ।
21. Discount (डिस्काउंट) : यह रियायत का एक ऐसा प्रकार है जो व्यापारी द्वारा अपने कस्टमर्स को प्रदान किया जाता है।