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IPO(आईपीओ) की प्रक्रिया क्या होती है? IPO की पूरी जानकारी
What is the process of IPO? Complete information about IPO in Hindi

IPO (Initial Public Offering) एक कंपनी द्वारा अपने शेयरों को सार्वजनिक रूप से पहली बार आम निवेशकों को बेचने की प्रक्रिया होती है। जब कोई निजी कंपनी अपने शेयरों को सार्वजनिक बाजार में सूचीबद्ध (list) करने का निर्णय लेती है, तो उसे आईपीओ के माध्यम से अपने शेयर जारी करने होते हैं। इस प्रक्रिया के द्वारा कंपनी को पूंजी प्राप्त होती है, और निवेशकों को कंपनी में हिस्सेदारी खरीदने का मौका मिलता है। आईपीओ का मुख्य उद्देश्य कंपनी के लिए पूंजी जुटाना, व्यापार का विस्तार करना, और सार्वजनिक पहचान प्राप्त करना है।
IPO(आईपीओ) की प्रक्रिया क्या होती है? IPO की पूरी जानकारी
IPO की प्रक्रिया के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं:
1. कंपनी का आईपीओ के लिए निर्णय
- सबसे पहले कंपनी यह निर्णय लेती है कि वह अपने शेयरों को सार्वजनिक रूप से बेचेगी।
- यह निर्णय कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स द्वारा लिया जाता है और कंपनी के विकास के लिए आवश्यक पूंजी जुटाने के उद्देश्य से लिया जाता है।
2. IPO के लिए निवेश बैंक की नियुक्ति
- कंपनी एक या अधिक निवेश बैंकों को आईपीओ जारी करने के लिए नियुक्त करती है। इन बैंकों को अंडरराइटर्स कहा जाता है। ये बैंकर कंपनी के शेयरों के मूल्य निर्धारण, दस्तावेज़ीकरण और बिक्री की प्रक्रिया में मदद करते हैं।
- अंडरराइटर्स कंपनी के साथ मिलकर शेयरों के मूल्य निर्धारण, बाजार का विश्लेषण, और शेयरों की बिक्री के लिए योजना बनाते हैं।
3. रेगुलेटरी अप्रूवल
- IPO जारी करने से पहले, कंपनी को सेबी (Securities and Exchange Board of India) से अनुमति प्राप्त करनी होती है। इसके लिए कंपनी एक दस्तावेज़ तैयार करती है जिसे ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) कहा जाता है।
- DRHP में कंपनी की वित्तीय स्थिति, प्रबंधन, व्यवसाय मॉडल, जोखिम, और शेयरों का वितरण जैसी जानकारी होती है।
- सेबी दस्तावेज़ की समीक्षा करता है और आवश्यक बदलावों के बाद इसे मंजूरी प्रदान करता है।
4. क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर्स (QIBs) से संपर्क
- IPO के कुछ हिस्से को प्राइवेट निवेशकों (जैसे की QIBs, HNI) को पेश किया जाता है, जो बड़े पैमाने पर निवेश करते हैं।
- यह प्रक्रिया सामान्यतः शेयरों की अधिकतम 50% हिस्सेदारी के लिए होती है।
5. IPO का मूल्य निर्धारण और कीमत का आवंटन
- जब सेबी से मंजूरी मिल जाती है, तो अंडरराइटर्स और कंपनी मिलकर शेयरों की कीमत तय करते हैं। यह कीमत आमतौर पर बैंड रेंज के रूप में होती है, जिसमें न्यूनतम और अधिकतम मूल्य होता है।
- निवेशक अपने निवेश के इच्छित मूल्य सीमा के आधार पर आईपीओ में आवेदन करते हैं।
6. IPO का सब्सक्रिप्शन और बिडिंग प्रक्रिया
- आईपीओ में निवेश के लिए एक निर्धारित अवधि (आमतौर पर 3 से 7 दिन) होती है, जिसमें निवेशक शेयरों के लिए आवेदन करते हैं। निवेशक ऑनलाइन या ऑफलाइन आवेदन कर सकते हैं।
- यदि आईपीओ को अधिक आवेदन प्राप्त होते हैं, तो इसे ओवरसब्सक्राइब कहा जाता है, यानी मांग आपूर्ति से अधिक होती है।
7. शेयरों का आवंटन
- आवेदनों की प्रक्रिया के बाद, कंपनी और अंडरराइटर्स यह निर्धारित करते हैं कि कितने शेयर किस निवेशक को आवंटित किए जाएं। अगर शेयरों की मांग अधिक हो तो सभी निवेशकों को उतने शेयर नहीं मिल सकते।
- इसके बाद निवेशकों को सूचित किया जाता है कि उन्हें कितने शेयर मिले हैं और उनके निवेश की स्थिति क्या है।
8. शेयरों का सूचीकरण (Listing)
- IPO के बाद, कंपनी के शेयर स्टॉक एक्सचेंजों (जैसे NSE और BSE) पर सूचीबद्ध हो जाते हैं। इसका मतलब है कि शेयरों का व्यापार अब सार्वजनिक रूप से किया जा सकता है।
- शेयरों के सूचीकरण के दिन, शेयरों की कीमत तय की जाती है और खुले बाजार में ट्रेडिंग शुरू होती है।
9. पब्लिक निवेशकों को आईपीओ के परिणाम की घोषणा
- IPO के समाप्त होने के बाद और शेयरों के आवंटन के बाद, सार्वजनिक रूप से यह घोषणा की जाती है कि कितने शेयरों का आवंटन हुआ है और उनका मूल्य क्या रहेगा।
- निवेशक अपने शेयरों को स्टॉक एक्सचेंज पर बेच सकते हैं या लंबी अवधि के लिए रख सकते हैं।
IPO के लाभ
- पूंजी जुटाना: कंपनी आईपीओ के माध्यम से निवेशकों से पूंजी प्राप्त करती है, जिससे उसे अपने व्यवसाय का विस्तार करने या ऋण चुकाने में मदद मिलती है।
- सार्वजनिक पहचान: आईपीओ से कंपनी को सार्वजनिक पहचान और सम्मान मिलता है।
- निवेशकों के लिए अवसर: निवेशकों को कंपनी के विकास में भागीदार बनने का मौका मिलता है।
- शेयर बाजार में पहुंच: कंपनी के लिए शेयर बाजार में एंट्री मिलती है, जिससे उसे और भी निवेशकों का ध्यान आकर्षित होता है।
IPO के नुकसान
- प्रबंधन का दबाव: सार्वजनिक कंपनी बनने के बाद, कंपनी को अधिक नियामक नियमों और नियंत्रणों का पालन करना पड़ता है।
- लागत: आईपीओ की प्रक्रिया महंगी हो सकती है क्योंकि इसमें अंडरराइटर्स और अन्य कानूनी, नियामक खर्चे शामिल होते हैं।
- मूल्य का उतार-चढ़ाव: आईपीओ के बाद शेयरों की कीमतों में उतार-चढ़ाव हो सकता है, जो कंपनी और निवेशकों के लिए जोखिम उत्पन्न कर सकता है।
IPO की प्रक्रिया लंबी और जटिल हो सकती है, लेकिन यह एक कंपनी के विकास और पूंजी जुटाने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।
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