Mughal-E-Azam (1960) Review, Story,Intresting Facts,Shootings Places, Behind Scene its in Hindi
मुगल-ए-आज़म (1960) की समीक्षा, कहानी, दिलचस्प तथ्य, शूटिंग स्थान और पर्दे के पीछे की जानकारी - हिंदी में

Mughal-E-Azam (1960) भारतीय सिनेमा की एक कालजयी फिल्म है, जिसका निर्देशन के. आसिफ ने किया था। यह फिल्म इतिहास, प्रेम, बलिदान और शाही विरासत की एक भव्य प्रस्तुति है।
“मुग़ल-ए-आज़म” एक ऐतिहासिक प्रेम कहानी है जो मुग़ल सम्राट अकबर और उनके पुत्र सलीम के बीच संघर्ष को दर्शाती है। सलीम को दरबार की सुंदर दासी अनारकली से प्रेम हो जाता है। यह प्रेम एक सामान्य प्रेमकथा न बनकर शाही प्रतिष्ठा, सम्मान और सत्ता के विरुद्ध बगावत का रूप ले लेती है।
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🎬 फिल्म समीक्षा: मुग़ल-ए-आज़म (Mughal-E-Azam)
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🎬 मुगल-ए-आज़म – एक शाही प्रेम गाथा
नाम: मुगल-ए-आज़म, Mughal-E-Azam (1960)
निर्देशक: के. आसिफ
निर्माता: शापूरजी पालोनजी
मुख्य कलाकार: पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, मधुबाला, दुर्गा खोटे
रिलीज़ वर्ष: 5 अगस्त 1960
शैली: ऐतिहासिक, ड्रामा, रोमांस
भाषा: हिंदी (बाद में रंगीन संस्करण भी रिलीज़ हुआ – 2004)
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मुख्य पात्र:
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प्रिथ्वीराज कपूर – सम्राट अकबर
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दिलीप कुमार – शहजादा सलीम
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मधुबाला – अनारकली
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दुर्गा खोटे – महारानी जोधा बाई
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अजीत – दुर्जन सिंह
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संगीत: नौशाद
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गीतकार: शकील बदायूंनी
Mughal-E-Azam (1960): Story
Mughal-E-Azam (1960): बादशाह अकबर , जिसका कोई पुरुष उत्तराधिकारी नहीं है, अपनी पत्नी जोधाबाई से एक बेटे को जन्म देने की प्रार्थना करने के लिए एक तीर्थ यात्रा पर जाता है। बाद में, एक दासी सम्राट को उसके बेटे के जन्म की खबर देती है। अपनी प्रार्थना के जवाब से बहुत खुश होकर, अकबर दासी को अपनी अंगूठी देता है और उसे जो भी चाहिए उसे देने का वादा करता है।
बेटा, शहजादा सलीम , बड़ा होकर बिगड़ैल, चंचल और आत्म-भोगी बनता है। उसके पिता उसे साहस और अनुशासन सिखाने के लिए युद्ध पर भेजते हैं। चौदह साल बाद, सलीम एक प्रतिष्ठित सैनिक के रूप में लौटता है और दरबारी नर्तकी नादिरा से प्यार करने लगता है, जो उस दासी की बेटी है जो सम्राट को उसके बेटे के जन्म की खबर लेकर आई थी। सम्राट ने नादिरा का नाम बदलकर अनारकली रख दिया , जिसका अर्थ है अनार का फूल। इस रिश्ते का पता ईर्ष्यालु बहार को चलता है, जो एक उच्च पद की नर्तकी है, जो चाहती है कि शहजादा सलीम उससे प्यार करे ताकि वह एक दिन महारानी बन जाए। सलीम का प्यार जीतने में असफल होने पर, वह अनारकली के साथ उसके वर्जित रिश्ते को उजागर कर देती है। सलीम अनारकली से शादी करने की विनती करता है, लेकिन उसके पिता मना कर देते हैं और उसे कैद कर लेते हैं
सलीम विद्रोह करता है और अकबर का सामना करने तथा अनारकली को बचाने के लिए सेना इकट्ठी करता है। युद्ध में पराजित होने के बाद सलीम को उसके पिता द्वारा मौत की सजा सुनाई जाती है, लेकिन उसे बताया जाता है कि अगर अनारकली, जो अब छिपी हुई है, को उसके स्थान पर मरने के लिए सौंप दिया जाता है, तो सजा रद्द कर दी जाएगी। अनारकली राजकुमार की जान बचाने के लिए खुद को सौंप देती है और उसे जिंदा दफनाकर मौत की सजा दी जाती है। अपनी सजा पूरी होने से पहले, वह सलीम के साथ उसकी काल्पनिक पत्नी के रूप में कुछ घंटे बिताने की भीख मांगती है। उसका अनुरोध स्वीकार कर लिया जाता है, क्योंकि वह सलीम को नशीला पदार्थ देने के लिए सहमत हो जाती है ताकि वह उसे दफनाने में बाधा न डाल सके।
जैसे ही अनारकली को दीवार में बंद किया जा रहा था, अकबर को याद आया कि वह अभी भी उसकी माँ का एहसानमंद है, क्योंकि वह ही थी जिसने उसे सलीम के जन्म की खबर दी थी। अनारकली की माँ अपनी बेटी की जान की भीख माँगती है। बादशाह का मन बदल जाता है, लेकिन हालाँकि वह अनारकली को रिहा करना चाहता है, लेकिन अपने देश के प्रति अपने कर्तव्य के कारण वह ऐसा नहीं कर सकता। इसलिए वह अपनी माँ के साथ उसके गुप्त निर्वासन की व्यवस्था करता है, लेकिन मांग करता है कि दोनों गुमनामी में रहें और सलीम को कभी पता न चले कि अनारकली अभी भी जीवित है।
🧵 कहानी का सारांश: Mughal-E-Azam (1960)
Mughal-E-Azam (1960) फिल्म की पृष्ठभूमि मुग़ल साम्राज्य के दौर की है, जब सम्राट अकबर (प्रिथ्वीराज कपूर) हिंदुस्तान पर राज करते हैं।
प्रेम कथा की शुरुआत:
अकबर और महारानी जोधा बाई (दुर्गा खोटे) का पुत्र सलीम (दिलीप कुमार), बचपन से ही विद्रोही स्वभाव का होता है। युद्ध के मैदान में भेजे जाने के बाद वह एक साहसी योद्धा बनकर लौटता है। दरबार में वह एक सुंदर और प्रतिभाशाली दासी अनारकली (मधुबाला) से प्रेम कर बैठता है।
प्रेम का विरोध:
सलीम और अनारकली का प्रेम जब सम्राट अकबर को पता चलता है, तो वे इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करते। उन्हें लगता है कि एक दासी और शहजादे का मिलन राजघराने की गरिमा के खिलाफ है। अकबर सलीम को प्रेम त्यागने का आदेश देते हैं, लेकिन सलीम अपने प्रेम के लिए विद्रोह कर देता है।
टकराव और युद्ध:
सलीम अपने पिता के खिलाफ युद्ध छेड़ देता है। लेकिन अकबर की विशाल सेना के सामने सलीम हार जाता है। उसे बंदी बना लिया जाता है और मृत्युदंड की सज़ा सुनाई जाती है। अनारकली को भी जेल में डाल दिया जाता है।
अनारकली का बलिदान:
अंत में, अनारकली अकबर से विनती करती है कि सलीम की जान बख्श दी जाए। अपने प्रेम की बलि चढ़ाकर वह सलीम को बचा लेती है। फिल्म के अंत में दिखाया जाता है कि अनारकली को एक दीवार में जिंदा चुनवा दिया जाता है (हालांकि फिल्म के अंत को लेकर कई मत हैं – कुछ संस्करणों में दिखाया गया कि उसे गुप्त रूप से छोड़ दिया जाता है)।
सम्राट अकबर को यह रिश्ता मंजूर नहीं होता, और यही बनता है फिल्म का मूल संघर्ष – प्रेम और सत्ता के बीच टकराव।
Mughal-E-Azam (1960): Review
🎭 अभिनय (Performance)
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दिलीप कुमार ने सलीम के किरदार में गहरी भावनाएं और विद्रोह दोनों को बखूबी निभाया है।
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मधुबाला ने अनारकली के किरदार को ऐसा जीवन दिया कि वह भारतीय सिनेमा की अमर प्रेमिकाओं में गिनी जाती हैं।
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पृथ्वीराज कपूर की अकबर के रूप में गूंजती आवाज़ और तेज़ निगाहें राजसी ठाठ का प्रतीक बन गईं।
🎥 निर्देशन और सिनेमैटोग्राफी
के. आसिफ का निर्देशन ऐतिहासिक फिल्मों में मील का पत्थर है। भव्य सेट, राजसी वेशभूषा, और यथार्थपूर्ण युद्ध के दृश्य आज भी दर्शकों को चौंका देते हैं। 1960 के दशक में इस तरह की भव्यता और टेक्नोलॉजी का उपयोग आश्चर्यजनक था।
विशेष उल्लेख: Mughal-E-Azam (1960) फिल्म का एक हिस्सा ब्लैक एंड व्हाइट और एक गाना – “प्यार किया तो डरना क्या” – टेक्नीकलर (रंगीन) में फिल्माया गया था, जो उस समय एक क्रांतिकारी प्रयोग था।
🎶 संगीत
नौशाद द्वारा रचित संगीत फिल्म की आत्मा है। शकील बदायूनी के लिखे गीत आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं।
प्रमुख गीत:
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“प्यार किया तो डरना क्या”
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तेरी महफ़िल में किस्मत आज़मा कर हम भी देखेंगे”
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“मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये”
📜 ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
Mughal-E-Azam (1960) “मुग़ल-ए-आज़म” भारतीय सिनेमा की सबसे महंगी और भव्य फिल्मों में से एक थी। इसे बनाने में करीब 10 साल लगे। यह फिल्म भारत की सांस्कृतिक धरोहर की तरह मानी जाती है।
🏆 पुरस्कार और सम्मान
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Filmfare Awards (1961):
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सर्वश्रेष्ठ फिल्म
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सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (दिलीप कुमार)
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सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (के. आसिफ)
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सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफी
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प्रसिद्ध संवाद: Mughal-E-Azam (1960)
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“सल्तनत की तख्त के लिए मोहब्बत की कुर्बानी दी जाती है, मोहब्बत के लिए सल्तनत कुर्बान नहीं की जाती।”
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“प्यार किया तो डरना क्या?”
- “सल्तनतें भी मोहब्बत के आगे झुक जाती हैं।”
Mughal-E-Azam (1960) Songs Intresting Facts:
1. “प्यार किया तो डरना क्या” 🎶
यह दृश्य फिल्म का सबसे प्रतिष्ठित और संवेदनशील दृश्य है। इसमें अनारकली (मधुबाला) अपने प्रेम की घोषणा खुले दरबार में करती है — जहां बादशाह अकबर खुद मौजूद होते हैं।
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संदेश: यह गीत प्रेम की निडरता और आत्म-सम्मान का प्रतीक है। अनारकली बेखौफ होकर कहती है कि अगर उसने प्यार किया है, तो उसे किसी से डरने की ज़रूरत नहीं।
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दृश्य की भव्यता: शीश महल में शूट किया गया यह दृश्य तकनीकी दृष्टि से भी बेहद प्रभावशाली था। इसमें हजारों शीशों का इस्तेमाल किया गया, और लाइटिंग के साथ एक विशेष तरह की चमक पैदा की गई।
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सांस्कृतिक महत्व: उस दौर में जब प्रेम को छिपाकर रखने की परंपरा थी, यह गीत सामाजिक बंधनों को चुनौती देता है।
- प्यार किया तो डरना क्या” को फिल्माने में कई महीने लगे थे और इसके लिए शीशों वाला महल तैयार किया गया था।
- इस प्रसिद्ध गीत की शूटिंग के दौरान मधुबाला की तबीयत खराब थी और वे अच्छी डांसर भी नहीं थीं। समस्या का समाधान करने के लिए मूर्तिकार बी.आर. खेड़कर ने मधुबाला का मुखौटा तैयार किया, जिसे पहनकर डांसर लक्ष्मी नारायण ने डांस किया। इस प्रकार, सेट पर दो मधुबालाएं थीं, एक असली और दूसरी नकली।
- गीत ‘प्यार किया तो डरना क्या’ के लिए विशेष शीशमहल सेट तैयार किया गया था, जिसमें बेल्जियम से शीशे मँगाए गए थे। इस सेट को रंगीन फिल्माने में तकनीकी चुनौतियाँ आईं, क्योंकि उस समय रंगीन फिल्मांकन की प्रक्रिया अभी विकसित हो रही थी। दो साल की मेहनत के बाद यह दृश्य फिल्माया जा सका।
2. “मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे” 🥁
यह गीत एक क्लासिकल कथक नृत्य आधारित प्रस्तुति है, जिसे दरबार में एक सांस्कृतिक उत्सव के दौरान प्रस्तुत किया गया है।
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प्रसंग: इस दृश्य में अनारकली राधा के रूप में श्रीकृष्ण से छेड़छाड़ की कहानी सुना रही होती है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से सलीम और अनारकली के प्रेम का प्रतीकात्मक चित्रण है।
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संगीत और नृत्य: लता मंगेशकर की आवाज़ और क्लासिकल धुनों के साथ यह गीत बेहद प्रभावशाली है। मधुबाला का भाव-प्रदर्शन और नृत्य इसे यादगार बना देते हैं।
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संवेदनशीलता: यह दृश्य दरबार में होते हुए भी, प्रेम की एक सांकेतिक अभिव्यक्ति है, जो बाद में सलीम और अकबर के टकराव का कारण बनता है।
3. “बेख़ुदी में खो गया है सारा जहाँ” 🌌
यह गीत सलीम की अनारकली के प्रति मोहब्बत की गहराई को दर्शाता है।
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भाव: सलीम (दिलीप कुमार) प्रेम में इतना डूबा होता है कि उसे दुनिया की कोई खबर नहीं रहती। यह गीत उनकी मानसिक अवस्था का प्रतिबिंब है।
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लोकेशन: यह गीत उन अंतरंग और निजी लम्हों को दर्शाता है जो प्रेमियों के बीच होते हैं, लेकिन सामंती व्यवस्था के खिलाफ एक व्यक्तिगत विद्रोह भी है।
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संवेदनशीलता: एक शहजादा अपने अधिकारों से परे जाकर एक दरबारी लड़की से प्रेम कर बैठता है – यह उस समय की सामाजिक-सांस्कृतिक सीमाओं को तोड़ने वाली बात थी।
“मुग़ल-ए-आज़म” फ़िल्म में संवेदनशील दृश्य: Mughal-E-Azam (1960)
Mughal-E-Azam (1960) भारतीय सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित और क्लासिक फिल्मों में से एक है। यह फिल्म प्रेम, विद्रोह, और शाही मर्यादा के टकराव की एक खूबसूरत कहानी है। इसमें कई ऐसे दृश्य हैं जो बेहद संवेदनशील और भावनात्मक रूप से गहराई से भरे हुए हैं।
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अनारकली का ज़िंदा दीवार में चुनवाया जाना – यह दृश्य फिल्म का चरम है और प्रेम के बलिदान की सबसे मार्मिक मिसाल बन जाता है।
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अकबर और सलीम का टकराव – बाप-बेटे के बीच का युद्ध सिर्फ सत्ता का नहीं, बल्कि प्रेम और कर्तव्य के बीच संघर्ष का प्रतीक है।
🕊️ 1. अनारकली और सलीम का प्रेम दृश्य (शिश महल का दृश्य)
जब अनारकली (मधुबाला) को शीश महल में बुलाया जाता है और वह “प्यार किया तो डरना क्या” गाना गाती है — यह सीन न सिर्फ साहसिक था, बल्कि अत्यंत भावनात्मक भी। उसने अपने प्रेम को खुलेआम स्वीकार किया, जहाँ हर शीशे में उसका प्रतिबिंब था — जैसे कि हर दिशा में उसका प्यार गूंज रहा हो।
🔗 2. सलीम का विद्रोह
जब सलीम अपने पिता अकबर से बगावत करता है, ये सिर्फ एक राजकुमार का विद्रोह नहीं था — ये प्रेम और सत्ता के बीच एक जंग थी। यह दृश्य दर्शकों के दिल को छूता है क्योंकि यहाँ बेटा और पिता की टकराहट, व्यक्तिगत और राजनीतिक दोनों स्तर पर होती है।
🕯️ 3. अनारकली को दीवार में चिनवाने का आदेश
यह दृश्य अत्यंत हृदय विदारक है। जब अकबर अनारकली को मौत की सजा सुनाता है — उसे दीवार में जिंदा चिनवा देने का फरमान — तब दर्शक अनारकली की पीड़ा और उसकी शहादत को महसूस करते हैं। यह दृश्य मानवीय संवेदनाओं की चरम सीमा को छूता है।
❤️🔥 4. अनारकली की माँ की याचना
अनारकली की माँ, जब बेटी की जान की भीख माँगती है, वो दृश्य दिल को झकझोर देता है। एक माँ का प्रेम और उसकी विवशता, और फिर भी अकबर का निर्णय — यह सब बेहद भावुक क्षण बनाता है।
🎭 5. अंतिम विदाई
फिल्म के अंत में जब अनारकली को रहस्यमयी तरीके से बचा लिया जाता है (फिल्म का एक काल्पनिक मोड़), और वह सलीम से हमेशा के लिए बिछड़ जाती है — यह मोमेंट गहरे दुख से भरा हुआ होता है। एक ऐसा प्यार जो अमर तो हो गया, लेकिन मिलन नहीं हो सका।
“मुग़ल-ए-आज़म” फ़िल्म में कलाकारो का चयन: Mughal-E-Azam (1960)
पृथ्वीराज कपूर ने पहले इस फिल्म में काम करने से इंकार कर दिया था, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उनके बेटे राज कपूर के समकालीन अभिनेता दिलीप कुमार के साथ काम करें। लेकिन बाद में उन्हें समझाया गया और उन्होंने फिल्म में अकबर की भूमिका स्वीकार की।
आसिफ ने शुरू में राजकुमार सलीम की भूमिका के लिए दिलीप कुमार को अस्वीकार कर दिया था। दिलीप कुमार एक ऐतिहासिक फिल्म में अभिनय करने के लिए अनिच्छुक थे, लेकिन फिल्म के निर्माता के आग्रह पर उन्होंने भूमिका स्वीकार कर ली। दिलीप कुमार के अनुसार, “आसिफ ने मुझ पर इतना भरोसा किया कि सलीम का चित्रण पूरी तरह से मुझ पर छोड़ दिया।” दिलीप कुमार को राजस्थान में फिल्मांकन के दौरान गर्मी और उनके द्वारा पहने गए शरीर के कवच के कारण कठिनाई का सामना करना पड़ा। अनारकली का हिस्सा पहले नूतन को दिया गया था , जिन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।
इस भूमिका के लिए सुरैया पर विचार किया गया था, लेकिन अंततः यह मधुबाला के पास चला गया, जो एक महत्वपूर्ण भूमिका के लिए तरस रही थीं। फिल्म साइन करने पर, मधुबाला को अग्रिम रूप से ₹ 1 लाख की राशि का भुगतान किया गया था, जो उस समय किसी भी अभिनेता / अभिनेत्री के लिए सबसे अधिक था। वह जन्मजात हृदय रोग से पीड़ित थीं , जो एक कारण था कि कई बार वह सेट पर बेहोश हो जाती थीं; जेल के दृश्यों को फिल्माते समय उनकी त्वचा पर खरोंचें भी आईं, लेकिन वह फिल्म को खत्म करने के लिए दृढ़ थीं।
“मुग़ल-ए-आज़म” फ़िल्म की शूटिंग: Mughal-E-Azam (1960)
Mughal-E-Azam (1960): कला निर्देशक एमके सैयद के नेतृत्व में फिल्म का प्रोडक्शन डिजाइन बहुत ही शानदार था और कुछ सेटों को बनाने में छह सप्ताह लग गए थे। फिल्म, जिसे ज्यादातर मुगल महल के अंदरूनी हिस्से को दर्शाने के लिए डिज़ाइन किए गए स्टूडियो सेट में शूट किया गया था, शानदार साज-सज्जा और फव्वारे और पूल जैसी पानी की विशेषताएं थीं, जो उस अवधि के हॉलीवुड ऐतिहासिक महाकाव्य की भावना पैदा करती थीं।
” प्यार किया तो डरना क्या ” गीत को मोहन स्टूडियो में लाहौर किले में शीश महल की प्रतिकृति के रूप में बनाए गए सेट पर फिल्माया गया था । यह सेट अपने आकार के लिए जाना जाता था, जिसकी लंबाई 150 फीट (46 मीटर), चौड़ाई 80 फीट (24 मीटर) और ऊंचाई 35 फीट (11 मीटर) थी। एक बहुत चर्चित पहलू बेल्जियम के कांच से बने कई छोटे दर्पणों की उपस्थिति थी, जिन्हें फिरोजाबाद के श्रमिकों द्वारा तैयार और डिजाइन किया गया था। सेट को बनाने में दो साल लगे और इसकी लागत ₹ 1.5 मिलियन (1960 में लगभग US$314,000) से ज़्यादा थी, उस समय एक पूरी हिंदी फ़िल्म के बजट से ज़्यादा। फ़िल्म के फाइनेंसरों को उत्पादन की उच्च लागत के कारण दिवालियापन का डर था।
पूरे भारत से कारीगरों को प्रॉप्स तैयार करने के लिए भर्ती किया गया था। वेशभूषा माखनलाल एंड कंपनी द्वारा डिजाइन की गई थी, और दिल्ली स्थित जरदोजी कढ़ाई में कुशल दर्जी ने मुगल पोशाक सिल दी थी। जूते आगरा से मंगवाए गए थे, आभूषण हैदराबाद में सुनार द्वारा बनाए गए थे , मुकुट कोल्हापुर में डिजाइन किए गए थे , और राजस्थान के लोहारों ने शस्त्रागार का निर्माण किया था (जिसमें ढाल, तलवारें, भाले, खंजर और कवच शामिल थे)। वेशभूषा पर जरदोजी भी सूरत के डिजाइनरों द्वारा सिली गई थी ।
भगवान कृष्ण की एक मूर्ति , जिससे जोधाबाई प्रार्थना करती थी, सोने से बनी थी। अकबर और सलीम के बीच युद्ध के दृश्य में कथित तौर पर 2,000 ऊँट, 400 घोड़े और 8,000 सैनिक शामिल थे, जिनमें से अधिकांश भारतीय सेना की जयपुर घुड़सवार सेना, 56वीं रेजिमेंट से थे। दिलीप कुमार ने पूरे कवच पहने हुए राजस्थान के रेगिस्तान में दृश्य के फिल्मांकन के दौरान तीव्र गर्मी के बावजूद शूटिंग की।
कुछ फिल्मी दृश्यों को 14 कैमरों से शूट किया गया था, जो उस समय के मानक से काफी अधिक था। फिल्म की लाइटिंग को लेकर कई कठिनाइयाँ थीं ; छायाकार माथुर को कथित तौर पर एक शॉट को लाइट करने में आठ घंटे लगे। कुल मिलाकर, 500 दिनों की शूटिंग की आवश्यकता थी, जबकि उस समय सामान्य शेड्यूल 60 से 125 शूटिंग दिन का होता था।
शीश महल सेट के बहुत बड़े आकार के कारण, 500 ट्रकों की हेडलाइट्स और लगभग 100 रिफ्लेक्टरों द्वारा प्रकाश व्यवस्था प्रदान की गई थी। सेट पर दर्पणों की उपस्थिति समस्याएँ पैदा करती थी, क्योंकि वे रोशनी में चमकते थे। ब्रिटिश निर्देशक डेविड लीन सहित विदेशी सलाहकारों ने आसिफ़ को यह विचार भूल जाने के लिए कहा क्योंकि उन्हें लगा कि तीव्र चकाचौंध में दृश्य को फिल्माना असंभव था। आसिफ माथुर ने “बाउंस लाइटिंग” को लागू करने के लिए कपड़े की रणनीतिक रूप से रखी गई पट्टियों का इस्तेमाल किया, जिससे चमक कम हो गई।
💔 मधुबाला और दिलीप कुमार की कहानी:
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इस फिल्म के दौरान दोनों के बीच प्रेम हो गया था, लेकिन शूटिंग के समय तक उनका रिश्ता टूट चुका था।
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इसके बावजूद दोनों ने कैमरे के सामने बहुत ही प्रभावशाली अभिनय किया।
📽️ फिल्म की सफलता:
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1960 में रिलीज़ के बाद ये फिल्म अब तक की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर बनी।
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यह भारतीय सिनेमा की पहली फिल्म थी जिसने उस समय 11 करोड़ रुपये से ज्यादा कमाए।
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आज भी इसे भारतीय सिनेमा की एक कालजयी कृति माना जाता है।
🎬 शूटिंग की जगहें (Shooting Locations)
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मोहन स्टूडियोज (Mumbai) – फिल्म का ज़्यादातर हिस्सा मोहन स्टूडियोज में शूट हुआ था। ये स्टूडियो अब नहीं है, लेकिन उस समय यह एक प्रमुख फिल्म शूटिंग लोकेशन था।
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शिवाजी पार्क और बांद्रा (मुंबई) – कुछ बाहरी सीन मुंबई के इन हिस्सों में शूट किए गए।
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राजस्थान के किलों की प्रेरणा – हालाँकि फिल्म के सेट्स असली किलों में नहीं बनाए गए थे, लेकिन राजस्थान के किलों से प्रेरणा लेकर उन्हें स्टूडियो में भव्य रूप से बनाया गया था।
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शालीमार गार्डन, कश्मीर (अनुमानित) – कुछ लोगों का मानना है कि अनारकली और सलीम के बगीचे वाले दृश्य शालीमार गार्डन से प्रेरित थे, पर अधिकतर दृश्य स्टूडियो में ही शूट किए गए।
- आरिफ़ाबाद पैलेस (पाकिस्तान): इस फिल्म की शूटिंग के लिए बहुत सारी जगहों को चुना गया था, लेकिन सबसे प्रमुख स्थान “आरिफ़ाबाद पैलेस” था, जो आज पाकिस्तान में स्थित है। यह स्थान उन दिनों मुग़ल साम्राज्य के सम्राटों के लिए आदर्श माना जाता था और फिल्म में इसे शाही महल के रूप में दिखाया गया था।
- फिल्म सिटी, मुंबई: फिल्म के कई महत्वपूर्ण दृश्य मुंबई स्थित फिल्म सिटी में शूट किए गए थे, जहाँ सेट्स को सजा कर एक शानदार शाही महल का रूप दिया गया।
- राजमहल, उत्तर भारत: फिल्म में कुछ दृश्य उत्तर भारत के राजमहल में शूट किए गए थे। यह स्थान भी मुग़ल साम्राज्य के राजसी जीवन को दर्शाने के लिए चुना गया था।
🎬 मुग़ल-ए-आज़म फ़िल्म से जुड़े रोचक तथ्य (Interesting facts related to the film Mughal-e-Azam)
फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ भारतीय सिनेमा का एक ऐतिहासिक और यादगार फिल्म है, जिसे बनाने में कई चुनौतियाँ और रोचक किस्से जुड़े हुए हैं।
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16 साल में बनी थी फिल्म
वैसे कहा जाता है फ़िल्म 9 या 10 साल में बनी लेकिन असल में निर्देशक के. आसिफ ने इस फिल्म को बनाने में लगभग 16 साल लगाए थे! इसकी शुरुआत 1944 में हुई और फिल्म 1960 में रिलीज़ हुई। -
सबसे महंगी फिल्म
उस दौर में मुग़ल-ए-आज़म भारत की सबसे महंगी फिल्म थी। इसका बजट लगभग ₹1.5 करोड़ रुपये था, जो उस समय के हिसाब से बहुत बड़ा था। -
ब्लैक एंड वाइट और कलर दोनों में
यह फिल्म मूल रूप से ब्लैक एंड वाइट में बनी थी, लेकिन इसका एक गाना — “प्यार किया तो डरना क्या” — टेक्नीकलर (रंगीन) में शूट किया गया था।
बाद में 2004 में इसे पूरी तरह से रंगीन संस्करण में फिर से रिलीज़ किया गया। -
कृष्ण कुमार “के. आसिफ” का सपना
निर्देशक के. आसिफ इस फिल्म को एक महाकाव्य बनाना चाहते थे। उन्होंने कई बार स्क्रिप्ट बदली और हर सीन को परफेक्ट बनाने के लिए रीटेक्स लिए। -
कठिन शूटिंग के अनुभव
माधुबाला को जेल के सीन के दौरान असली लोहे की जंजीरें पहननी पड़ी थीं। इससे उन्हें काफी तकलीफ हुई थी लेकिन उन्होंने शूटिंग पूरी की। -
भारत-पाक विभाजन का असर
Mughal-E-Azam (1960) फिल्म की शूटिंग के दौरान इसके कुछ कलाकार और निर्माता पाकिस्तान चले गए, जिससे फिल्म की शूटिंग बीच में रुक गई थी। -
दिलीप कुमार और माधुबाला का रिश्ता
दिलीप कुमार और माधुबाला का उस समय अफेयर था, लेकिन फिल्म के दौरान दोनों के रिश्ते में दरार आ गई थी। फिर भी दोनों ने बहुत ही भावुक और सुंदर परफॉर्मेंस दी। -
रिकॉर्ड तोड़ कमाई
मुग़ल-ए-आज़म ने बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़ कमाई की थी। उस समय इसने ₹11 करोड़ कमाए थे। -
डायलॉग्स और संगीत
Mughal-E-Azam (1960) फिल्म के संवाद इतने असरदार थे कि आज भी उन्हें कोट किया जाता है। जैसे:
“सल्तनतें भी मोहब्बत के आगे झुक जाती हैं।”
संगीतकार नौशाद ने फिल्म का संगीत रचा था, जो आज भी अमर है। -
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
Mughal-E-Azam (1960) फिल्म को बेस्ट फिल्म (हिंदी) का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और इसे भारत की क्लासिक फिल्मों में गिना जाता है। -
तीन भाषाओं में शूटिंग – फिल्म को हिंदी, उर्दू, और अंग्रेज़ी में शूट करने की कोशिश की गई थी, लेकिन अंत में केवल हिंदी में रिलीज़ किया गया।
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सबसे महंगी फिल्म (उस समय) – उस समय की यह सबसे महंगी फिल्म थी, जिसकी लागत ₹1.5 करोड़ (1960 के अनुसार) थी।
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असली पंख, असली गहने – फिल्म के लिए मधुबाला को जो गहने पहनाए गए थे, वे असली सोने-चांदी और मोतियों के थे। अनारकली के पंखों वाला सीन (शमा के आगे नाचते हुए) में असली मोर पंख इस्तेमाल किए गए थे।
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कलर और ब्लैक एंड व्हाइट – यह मूल रूप से ब्लैक एंड व्हाइट में बनी थी, लेकिन “प्यार किया तो डरना क्या” गाना कलर में शूट किया गया था। 2004 में पूरी फिल्म को डिजिटल कलर में दोबारा रिलीज़ किया गया।
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रंगीन रीरिलीज़ – 2004 में फिल्म को रंगीन रूप में फिर से रिलीज़ किया गया और उसे भी काफी सराहना मिली।
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दिल को छू लेने वाला संगीत – नौशाद के संगीत और लता मंगेशकर की आवाज़ ने इस फिल्म को अमर बना दिया। खासतौर पर “मोहे पनघट पे” और “प्यार किया तो डरना क्या” आज भी सुने जाते हैं।
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मधुबाला की स्वास्थ्य समस्याएँ: इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मधुबाला का दिल की बीमारी से जूझना पड़ा। वे कई बार शूटिंग के दौरान बीमार पड़ीं, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने अभिनय को जारी रखा। यही कारण है कि फिल्म में कई दृश्य असाधारण तरीके से फिल्माए गए, खासकर उनका प्रसिद्ध “प्यार किया तो डरना क्या” गीत।
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रंगीन फिल्म का पहला प्रयोग: मुग़ल-ए-आज़म भारतीय सिनेमा की पहली ऐसी फिल्म थी जिसे टोटल-कलर में शूट किया गया था। उस समय फिल्म के रंगीन होने को लेकर काफी विवाद हुआ था, लेकिन फिल्म के अंतर्गत दृश्य और सेट डिज़ाइन ने इसे एक नए मुकाम पर पहुंचाया।
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अद्भुत सेट डिज़ाइन: फिल्म के सेट डिज़ाइन और कास्ट्यूम्स को लेकर काफी चर्चा हुई थी। फिल्म में इस्तेमाल किए गए सेट्स इतने भव्य थे कि कई लोग यह मानते हैं कि यह भारतीय सिनेमा के लिए एक अभूतपूर्व प्रयास था। फिल्म की शूटिंग में उस समय के सभी तकनीकी और कलात्मक संसाधनों का सही उपयोग किया गया था।
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बॉक्स ऑफिस पर सफलता: यह फिल्म भारत की सबसे बड़ी बॉक्स ऑफिस हिट फिल्मों में से एक बन गई थी। “मुगल-ए-आज़म” ने न केवल भारतीय दर्शकों के दिलों में जगह बनाई, बल्कि दुनियाभर में भारतीय सिनेमा का परचम भी लहराया।
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रियल एक्स्ट्रा के लिए अभिनेता: फिल्म में जो युद्ध दृश्य थे, उन्हें फिल्माने के लिए वास्तविक घुड़सवारों और सैनिकों को बुलाया गया था। यद्यपि यह एक काल्पनिक कथा थी, लेकिन इसके दृश्य वास्तविकता के नजदीक दिखाए गए थे।
Mughal-E-Azam (1960) फ़िल्म की शूटिंग के दौरान अन्य परेशानिया
1. मधुबाला की सेहत और फिल्म से बाहर होने का डर:
मधुबाला इस फिल्म की प्रमुख नायिका थीं, और उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी। लेकिन फिल्म की शूटिंग के दौरान उनकी सेहत लगातार बिगड़ती गई। मधुबाला को दिल की बीमारी थी, और डॉक्टरों ने उन्हें कम शारीरिक मेहनत करने की सलाह दी थी। इसके बावजूद, उन्होंने अपनी भूमिका निभाने के लिए पूरी मेहनत की और कई जटिल दृश्य किए। फिल्म के सेट पर, उन्हें अक्सर कई कठिन शारीरिक और भावनात्मक दबावों का सामना करना पड़ा, विशेष रूप से जब उन्हें अपने किरदार के लिए बहुत सी हिंसक और लम्बी शॉट्स करने थे।
2. दीलिप कुमार और मधुबाला के रिश्ते में तनाव:
Mughal-E-Azam (1960): मुग़ल-ए-आज़म के निर्माण के दौरान, दिलिप कुमार और मधुबाला के बीच निजी संबंधों में भी तनाव आ गया था। दोनों का प्यार एक समय बहुत ही चर्चित था, लेकिन बाद में इन दोनों के बीच अनबन हो गई। कहा जाता है कि मधुबाला के पिता, दिलिप कुमार को पसंद नहीं करते थे और उनका इस रिश्ते के खिलाफ थे। दिलिप कुमार और मधुबाला के बीच की यह दरार फिल्म के सेट पर भी दिखाई दी, और इसने फिल्म की शूटिंग के दौरान एक गहरी मानसिक स्थिति पैदा की। इस वजह से दोनों के बीच का संबंध और भी तनावपूर्ण हो गया, जिससे फिल्म की शूटिंग पर असर पड़ा।
3. के. आसिफ की दृढ़ता:
Mughal-E-Azam (1960) फिल्म के निर्देशक के. आसिफ को अपनी फिल्म को पूरा करने के लिए कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वह एक निर्देशक के रूप में बहुत ही संजीदा थे और चाहते थे कि फिल्म का हर पहलू बेमिसाल हो। यह उनके लिए चुनौतीपूर्ण था क्योंकि फिल्म के सेट पर कई बार कलाकारों के बीच विवाद होते थे, और कई बार शूटिंग में देरी होती थी। वह पूरी तरह से सुनिश्चित करना चाहते थे कि फिल्म का हर दृश्य दर्शकों को प्रभावित करे। इसका एक उदाहरण फिल्म के भव्य महल के सेट को बनाने में है, जो बहुत ही महंगा और विशाल था।
5. फिल्म के संगीत का जादू:
Mughal-E-Azam (1960) फिल्म का संगीत भी इसकी सफलता के एक प्रमुख कारण था। संगीतकार Naushad और गायक Lata Mangeshkar, Mohammed Rafi, और Manna Dey ने संगीत में अद्भुत योगदान दिया। फिल्म के गाने, जैसे “Pyaar Kiya To Darna Kya”, “Teri Mehfil Mein”, और “Mohe Panghat Pe”, आज भी भारतीय सिनेमा के सबसे खूबसूरत गीतों में माने जाते हैं।
6. सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य:
Mughal-E-Azam (1960) के निर्माण के दौरान भारत में एक नए दौर की शुरुआत हो रही थी। 1960 के दशक में, भारतीय सिनेमा एक महत्वपूर्ण बदलाव से गुजर रहा था और फिल्म इंडस्ट्री में अधिक तकनीकी और कलात्मक प्रयास किए जा रहे थे। इस फिल्म का सेट बड़े पैमाने पर था, और इसमें बहुत सारी मंहगी प्रोडक्शन डिज़ाइन थी। यह फिल्म ने भारतीय सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और इसने भारतीय फिल्म निर्माण के एक नए युग की शुरुआत की।
Mughal-E-Azam (1960): मुगल-ए-आज़म उस समय तक किसी भी भारतीय फिल्म की तुलना में सबसे बड़ी रिलीज़ थी, और अक्सर दर्शक पूरे दिन टिकट के लिए कतार में खड़े रहते थे।
⭐ रेटिंग: 4.5/5
Mughal-E-Azam (1960) केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा का गौरवशाली अध्याय है।
प्रेम, बलिदान और सम्मान की यह गाथा हर पीढ़ी को प्रेरणा देती है।
Mughal-E-Azam (1960)

Director: K. Asif
Date Created: 2025-05-06 18:05
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