फिल्म दो बीघा ज़मीन 1953 की कहानी || Movie Do Bigha Zamin 1953 Hindi Story
फिल्म दो बीघा ज़मीन 1953 की कहानी || Movie Do Bigha Zamin 1953 Hindi Story |
दो बीघा ज़मीन 1953 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस में सामान्य रही।
संक्षेप
शम्भू (बलराज साहनी) एक ग़रीब किसान है जिसके पास पूरे परिवार का पेट पालने के लिए सिर्फ़ दो बीघा ज़मीन ही है। उसके परिवार में उसकी पत्नी पार्वती पारो (निरूपा रॉय), लड़का कन्हैया, बाप गंगू और एक आने वाली सन्तान हैं। कई सालों से उसके गाँव में लगातार सूखा पड़ रहा है और शम्भू जैसे ग़रीब किसान बदहाली का शिकार हैं।
उसके गाँव में एक ज़मींदार है ठाकुर हरनाम सिंह (मुराद), जो शहर के व्यवसायियों के साथ मिलकर अच्छा मुनाफ़ा कमाने के लिए अपनी विशाल ज़मीन पर एक मिल खोलने की योजना बनाता है। बस एक ही अड़चन है कि उसकी ज़मीन के बीचों बीच शम्भू की ज़मीन है। हरनाम सिंह काफ़ी आश्वस्त होता है कि शम्भू अपनी ज़मीन उसे बेच ही देगा।
जब शम्भू हरनाम सिंह की बात नहीं मानता है तो हरनाम सिंह उसे अपना कर्ज़ा चुकाने को कहता है। शम्भू अपने घर का सारा सामान बेचकर भी रक़म अदा नहीं कर पाता क्योंकि हरनाम सिंह के मुंशी ने सारे क़ागज़ात जाली कर दिये थे और रक़म बढ़कर ₹६५ से ₹२३५ हो जाती है। मामला कोर्ट में जाता है और कोर्ट अपना फ़ैसला यह सुनाता है कि ३ माह के अन्दर शम्भू को यह रक़म चुकानी होगी वर्ना उसके खेत बेच कर यह रक़म हासिल कर ली जायेगी।
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मरता क्या न करता। शम्भू को उसके जानने वाले यह सलाह देते हैं कि वह कोलकाता में जाकर नौकरी कर ले और अपना कर्ज़ा चुका दे। शम्भू अपने बेटे के साथ कोलकाता चला जाता है और रिक्शा चालक का व्यवसाय अपना लेता है। लेकिन एक के बाद एक हादसे (जैसे उसका ख़ुद चोटिल हो जाना, उसकी पत्नी का कोलकाता में चोटिल हो जाना और उसके बच्चे द्वारा चोरी) उसकी कमाई पूंजी को ख़त्म कर देते हैं।
जब अपनी सारी पूंजी गंवा कर वह गाँव वापिस आता है तो पाता है कि उसकी ज़मीन बिक चुकी है और उस जगह पर मिल बनाने का काम चल रहा है। उसका बाप बदहवास (पागल) सा फिर रहा है। अंत में वह अपनी ज़मीन की एक मुट्ठी मिट्टी लेने की कोशिश करता है लेकिन वहाँ बैठे गार्ड उससे वह भी छीन लेते हैं।
मुख्य कलाकार
- बलराज साहनी – शम्भू
- निरूपा रॉय – पार्वती
- मुराद – ठाकुर हरनाम सिंह
- मीना कुमारी – बहू
- जगदीप – लालू ‘उस्ताद’
- नज़ीर हुसैन – बूढ़ा रिक्शा चालक
संगीत
इस फ़िल्म के गीतों के बोल लिखे थे शैलेन्द्र ने और उनको स्वरबद्ध किया था सलिल चौधरी ने।
गीत | गायक | |
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१ | आ जा री आ निंदिया तू आ | लता मंगेशकर |
२ | अजब तोरी दुनिया हो मेरे राजा | मोहम्मद रफ़ी |
३ | धरती कहे पुकार के | मन्ना डे, लता मंगेशकर और साथी |
४ | हरियाला सावन ढोल बजाता आया | मन्ना डे, लता मंगेशकर और साथी |
रोचक तथ्य
- फ़िल्म का ख़िताब रबीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता दुई बीघा जोमी से लिया गया है।
- अपने क़िरदार के साथ न्याय करने के लिये बलराज साहनी ने कोलकाता की सड़कों पर ख़ुद रिक्शा चलाया और रिक्शा चालकों के साथ बातचीत कर के यह पाया कि जो क़िरदार वह निभाने जा रहे हैं वह किस हद तक सही है।
नामांकन और पुरस्कार
सन् १९५४ में पहली बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार स्थापित किये गये थे और इस फ़िल्म को दो पुरस्कार मिले
इसके अलावा इस फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिए प्रथम राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।